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कविता

क्या साल पिछला दे गया

हरिवंश राय बच्चन


कुछ देर मैं पथ पर ठहर,
अपने दृगों को फेरकर,
लेखा लगा लूँ काल का जब साल आने को नया!
क्या साल पिछला दे गया?

चिंता, जलन, पीड़ा वही,
जो नित्य जीवन में रही,
नव रूप में मैंने सही,
पर हो असह्य उठी कई परिचित निगाहों की दया!
क्या साल पिछला दे गया?

दो-चार बूँदें प्यार की
बरसीं, कृपा संसार की,
(हा, प्यास पारावार की)
जिनके सहारे चल रही है जिंदगी यह बेहया!
क्या साल पिछला दे गया?

 


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